चलते रहे, कांच पर जलते रहे, आंच पर जो इश्क की तू लगा क गयी आग है, आग है मैं भी आ जाऊं चल के वहां अगर जान लूँ तू कहाँ मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा ख़ाक से ख़ाक तर, कर गयी तू मगर दिल ये अब भी वहीँ पर है ठहरा हुआ आएगी तू सही, दीखता कुछ भी नहीं एक इसी बात का दिल पे पहरा हुआ खुद को खो कर भी मैं सोचूँ तू है कहाँ मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा साथ थे तुम मगर, साथ थे ही नहीं मंज़िलें जो दिखे तो रास्ते ही नहीं फिर से आ जा इस गली में बिचड़ा था जिस गली में डगमगाती उमीदें इन को तोड़ी न मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा वे मुर्शिदा, निशान दे ज़रा वे मुर्शिदा, किधर तू रहने लगा वे मुर्शिदा