Rakhtbhoomi - Last Rituals
भांप दे जो रूह को गुज़रे हुए हर वक़्त में
हैं वो उबाल उन श्वेत लाल शहीदों के रक्त में
रक्त भूमि पर झर झर बरसे
फूल पंखुड़ी बूंदे तरसे
मौत को ललकारते
हैं शूरवीर दहाड़ते
यह आतिशों का प्रहार हैं ।
आँधियाँ आक्रोश की
यह ज्वालाएं प्रतिशोध की
जल रहा यह संसार हैं ।
रक्त भूमि पर झर झर बरसे
फूल पंखुड़ी बूंदे तरसे
उड़ गए सारे रंग
कैसी बेरहम हैं यह जंग
ज़ख्म यह गहरा हैं
क्यों यह जहां सारा ठहरा हैं
क्यों खड़ी हैं यह दीवारें
इंसानियत को यह हैं मारे
बर्बादियों को ज़लज़ला हैं
आंसुओं की लगी हैं धारें
होंसलों को बुलंद तू करके
चलता जा अपना सीना तन के
रक्त भूमि पर झर झर बरसे
फूल पंखुड़ी बूंदे तरसे |